आइनों से सूरत छिप नही सकती,
मुखौटे चाहे चेहरे के कितने भी बदल लो,
अभी भी वक्त है हकीकत का परदा उठने में,
तुम थोड़ा अपने दिल की तस्वीर बदल लो॥
सब कर लो तुम आज यहाँ खौफ किसका है,
जी लो जी भर कर अब रौब किस का है,
मगर उठे है सवाल तो कुछ कमी तो है,
ज़रा देखो इन पलकों में नमी तो है,
हकीकत तो है मगर ज़रा दूर की सोचिये,
जो सच्चाई से हटा रहा वो ख्वाब बदल लो॥
पहले तो हकीकत की जिद करी जाती है,
फ़िर लोग बाद में कहते हैं जवाब बदल लो॥
अकड़ इतनी भी क्या ख़ुद पे की कोई पास न आए,
तुम ज़रा अपनी नज़रों के अंदाज़ बदल लो......
Wednesday, November 11, 2009
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