ख्वाबो के आशियाँ खुद परिंदे गिरा गए..
तिनको के निशा भी तूफ़ान मिटा गए..
जलाई थी शमा उनके इंतज़ार में हमने..
वो चिराग ही देखो मेरा घर जला गए..
जा रहे थे दूर फिर वो मुस्कराते कैसे..
मगर अफ़सोस की आंसू भी पलकों में छुपा गए..
होठ कह न सके और निगाहें खामोश रही..
और वो हमारी मजबूरी बेवफाई बता गए..
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