हाथों में लकीरें भी थी, कुछ उनसे जुड़ी तकदीरें भी थी,
जिंदगी में कुछ आरज़ू थी, दिल में तसवीरें भी थी,
कुछ तो सामने था, और कुछ तहरीरें भी थी,
रिश्ते थे नाते थे,
कुछ देते थे तो कुछ पाते थे...
कभी बातें थी मोहब्बत की, तो कभी आंसू भी आते थे,
वक़्त जाता रहा और हम पीछे आते रहे,
रिश्ते-नाते, मोहब्बत की बातें, सब दूर जाते रहे,
कुछ हम मजबूर होते चले गए, तो कुछ जंजीरें भी थी,
जब सूना हुआ मंज़र तो उनकी याद आती है,
अब वो छोटी सी हँसी बस जेहन में ही रह जाती है,
ये जिंदगी क्यों हमें ऐसे सपने दिखाती है,
क्यो उन्ही की खातिर ख़ुद से दूर ले जाती है,
अब अक्सर तन्हाईओं से बातें होती है,
बंद कमरों में ख़ुद से मुलाकातें होती है॥
आज बेरंग है वो जो रंगीन तसवीरें थी॥
आज सोचते हैं की क्या हमारी तकदीरें भी थी,
क्या मेरे हाथों में कुछ लकीरें भी थी......
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