दिल नही रुकता अब हमारे समझाने से,
कम नही होती चाहत उनसे दूर जाने से,
गुजरते हैं वो करीब से, दिल में हलचल सी होती है,
उसकी आहट सुनाई देती है अब सांसो के आने से,
कुछ नही है खोने को फ़िर भी ये खौफ कैसा,
क्यों माथे पे सिकन है किसी दर्द के एहसास जैसा॥
हीरे जवाहरात भी नही जो उनकी ही फ़िक्र हो,
अब क्या लेकर जाएगा तू इस गरीब के खजाने से,
एक अरसा गुजरा है तेरा इंतज़ार करते करते,
अब तो पास आ जा यार किसी भी बहाने से,
नही याद आती है मुझको, तेरी चाहत भी नही करते,
ख़ुद को ही भूल गया हूँ मैं तुझको भुलाने में,
बार बार मिलाती है मगर पराया बनाकर,
वह रे तकदीर, तू बाज़ ने आई सताने से...
Tuesday, December 1, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment