दरम्यान-ऐ-महफ़िल होंगे तो मुस्करायेंगे,
लेकिन आंसू तो हँसी क साथ भी आयेंगे,
अपने दमन में हम समेट तो लेंगे इनको,
संभाल लेंगे दिल को भी, ये न कह पाएंगे..
क्या बयान करनी ये आहातें जिंदगी की,
खुशगंवार मौसम पे बादलों का साया है,
दर्द अम्बर का है जो ये यू बरसने लगा है,
भीग जाने दो हमको, हम अब न रह पाएंगे..
हर्ज इसमें है कैसा, फासला तो दिखा,
तेरे दिल की जगह कुछ अलग सा मिला,
ये मोम की मूरत है, चिराग ना जलाओ,
रौशनी की गर्माहट को ये न सह पाएंगे..
Saturday, February 20, 2010
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