अब क्या फर्क सब के एक से इरादे हैं,
एक ही शतरंज के राजा वजीर और प्यादे हैं,
कोई मत कहो अब वादों पर यकीन करने को,
क्या अन्ना क्या नेता, दोनों ही कपड़ो के सादे हैं..
मगर क्या कहा जाये उनसे और क्या न कहें हम,
उनके झूठ में शामिल कुछ हमारे भी वादे हैं??
ये तो पनपती रहेगी जब तक हम नहीं सुधरे,
अगर वो आते हैं घर तक, तो कभी हम भी तो जाते हैं??
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