ये मन है,
हमेशा कुछ तलाश करता रहता है,
कभी तेज़ धूप में,
तो कभी शाम की हलकी सी छांव में,
बारिश की बूंदों में,
तो कभी ख़ाली सूनेपन में,
भीड़ में, सफ़र में,
दरख्तों में या शहर में, हर कहीं..
ये मन कुछ तलाशता रहता है.
कभी ज़िक्र नहीं करता,
मगर रात भर,
चाँद की मद्धम सी रौशनी में,
ख्यालों को खोजता रहता है,
पंछिओं के झुण्ड में,
उड़ने की सोचता है..
सावन की बूंदों के संग,
बरसने को चाहता है
पतझड़ में टूटे पत्ते संग खुद भी,
हवा में तैरता रहता है...
मैं भी सोचता रहता हूं की,
ये मन कुछ तलाशता रहता है..
सड़कों पे हमेशा,
रास्तों को खोजता रहता है,
सर्द ओस की बूंदों में भी,
नमी को खोजता रहता है,
और अगर सब ठीक है,
तो क्या क्या है ठीक..
बस यही सोचता रहता है..
ये तो मन है,
कुछ न कुछ तलाशता रहता है?
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