ऐ वक़्त,
तू तो बढ़ता है पर मेरे कदम अब साथ नहीं देते,
और जो रुकूँ तो कारवां से बिछड़ जाऊंगा,
ऐ हवा,
तू तो बह जाएगी अपनी रौ में लेकिन,
मैं तिनको का आशियाँ हूँ उजड़ जाऊंगा,
ऐ लहर,
तुम अपनी मौजों से यूँ ही खेलती रहो,
कितना भी तुम चाहो मुझे आकर देना,
मैं तो रेत हूँ, कभी तो बिखर जाऊंगा,
ऐ जान,
इतनी हमदर्दी न रख इस जिस्म से,
कब तक तुझे यूँ ही कैद कर पाउँगा,
अब तब चाहे जब, हमे तो अलग होना ही है,
मैं भी इंसान ही हूँ, कभी न कभी तो मर जाऊंगा.....
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