उसकी डोली उठी, मेरी मैय्यत उठी,
फूल उस पर भी था, फूल मुझ पर भी था,
महफ़िल वहां भी थी, लोग यहाँ भी थे,
उसका हसना वहां, मेरा रोना यहाँ,
सहेलियां उसकी भी थी, दोस्त मेरे भी थे,
वो सज के गए, मुझे सजाया गया,
उसकी किस्मत वो थी, मेरी मैय्यत ये थी,
वो उठ कर गई, मुझे उठाया गया,
वो चार कन्धों पे थी, मैं भी चार कन्धों पे था,
फर्क इतना सा था इस फ़साने का दोस्त..
उसको अपनाया गया, मुझको दफनाया गया..
उसका दुनिया में एक नया जहाँ बसाया गया,
और मेरे बेजान जिस्म को भी जलाया गया..
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