रख सकूँ तुझको इस दिल के आईने में,
बंदिशे बहुत हैं मेरी जान क्या करूँ,
जलाया तो खुद को तेरी रौशनी की खातिर,
कम पड़ गया मेरे जिस्म का सामन क्या करूँ,
आगे और भी हैं मंज़र कई तिलिस्मात के,
फिर राह जिंदगी की आसान क्या करूँ,
कुफ्र बन कर मेरे दिल पर ये बोझ रहेगा,
मैं कुछ पल का यहाँ हूँ मेहमान क्या करूँ...
कसक क्यों है, ये आँखें गुमनाम क्यों हैं,
चेहरे पे तनहाइयों की शाम क्यों है,
आज ना होते ये आंसू, ना होते ये लोग,
मगर रुख्शत किया तुमने शमशान क्या करूँ...
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