जल रही ये जिंदगी क्यों पता नहीं,
बस कुछ है जो सुलगने की वजह देता है..
कुछ बुझे से जज़्बात इस दिल में बाकी हैं,
कोई तो है जो हर बार इनको हवा देता है..
बेजान सा जिस्म है किसी दर्द का एहसास नहीं,
हर रोज बुझता सूरज एक दर्द जगा देता है..
आज भी हर वो शख्श पाक है इस जहान में,
जुर्म करने के बाद जो हर सुराग मिटा देता है..!!
Thursday, March 4, 2010
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