अभी तक मेरे पास थे,
मगर कहाँ गए..
इस भीड़ में कहीं खो तो नहीं गए,
नहीं नहीं, पापा बहुत मारेंगे..
ज़रा ढूंढो..
मेरा साथ दो तुम भी..
जल्दी देखो,
कहीं टूट ना जायें,
बहुत वक़्त से संजो के रखा था..
माँ को भी यही पसंद था,
मगर यहाँ गर्दिश बहुत है,
ना जाने कहाँ खो गया है..
ज़रा मदद कर दो..
अरे..
मगर वो था क्या,
बहुत कीमती था, क्या सोना..
नहीं..
इतना सस्ता नहीं..
तो,
क्या माँ कि निशानी थी,
या कोई जवाहरात..
नहीं नहीं..
कोई सामान नहीं था,
वो मेरे सपने थे..
जो मैं साथ लाया था,
इस शहर में,
साकार करने..
मगर,
भागते समाज के साथ,
बदलते दौर में,
ना जाने कहाँ खो दिए..
वो मेरे सपने थे,
जिनके लिए,
सब छोड़ कर आया था..
बस उन्हें ही साथ लाया था,
तेज रफ़्तार में,
वो भी खो गए हैं,
वो मेरे सपने थे..
3 comments:
sapne to khone ke liye hin hayn..sapne to tut jaane ke liye hin hayn..jab bhi aisa ho to bas haqiqit me jina chahiye..aaram milega
kaya aap blogvani par hayn?
yadi nahi to www.blogvani.com par jaakar uski sadasyata le..aapko jayada se jayaada log wahin padh paayenge..ya mujhe suchit karen.
sahi me sapne kho jate hai duniya ki tej raftari me..
Post a Comment